हिंदी सिनेमा के सफर में कुछ कहानियाँ दिल को छू जाती हैं। ऐसी ही एक कहानी है Sanjeev Kumar की, जिन्हें एक वक्त पर स्टंटमैन के नाम से जाना जाता था। लेकिन ‘सुनघर्ष’ (1968) फिल्म ने उनकी ज़िंदगी बदल दी। आज भी लोग पूछते हैं – जब बड़ी-बड़ी हस्तियाँ इस फिल्म से मना कर रही थीं, तब संजीव को ये मौका कैसे मिला?
1960 के दशक के आख़िर में Sanjeev Kumar एक संघर्षरत अभिनेता थे। दिल में बहुत सपने थे लेकिन काम नहीं मिल रहा था। ऐसे ही समय में ‘सुनघर्ष’ के निर्देशक एच.एस. रावैल को एक ऐसे अभिनेता की तलाश थी जो दिलीप कुमार जैसे दिग्गज के सामने टिक सके। लेकिन ज़्यादातर सितारों ने मना कर दिया, उन्हें डर था कि कहीं वो स्क्रीन पर फीके ना पड़ जाएं।
Sanjeev Kumar को विश्वास था कि वह इस रोल के लिए सही हैं, लेकिन उनसे खुद रावैल से बात करने की हिम्मत नहीं हुई। यहाँ से कहानी में आता है उनका सबसे भरोसेमंद इंसान सचिव जमनादास। जमनादास ने हार नहीं मानी। वो बार-बार रावैल के ऑफिस गए, तस्वीरें दिखाईं, सिफारिश की। इतना कि रावैल ने उन्हें दफ्तर से ही बाहर कर दिया।
लेकिन जमनादास रुके नहीं। उन्होंने एक नया रास्ता खोजा। रावैल के दोस्त और कार्ड खेलने के साथी रमेश सैगल से संपर्क किया और संजीव के कुछ पुराने रील्स उन्हें दिखाए। वही रील्स जब रावैल ने देखीं, तो उन्हें याद आया – ये वही अभिनेता है जिसे उन्होंने एक नाटक में देखा था। और तभी तय हुआ कि ‘हरिहर जरिवाला’ यानी संजीव कुमार को ये भूमिका मिलनी ही चाहिए।
मुंबई के फेमस स्टूडियो में शूटिंग शुरू हुई। पहली ही सीन – दिलीप कुमार के सामने एक बिना डायलॉग वाला चेस सीन – इतना दमदार था कि एक भी रीटेक नहीं हुआ।
हालांकि फिल्म के बाद इंडस्ट्री में अफवाहें थीं कि दिलीप कुमार ने संजीव के साथ दोबारा काम करने से इनकार कर दिया था। लेकिन बाद में दोनों ने ‘विदाता’ (1982) में साथ काम किया, और सारी बातों पर विराम लगा।
आज जब हम Sanjeev Kumar को याद करते हैं, तो उनकी फिल्मों से ज़्यादा उनका संघर्ष हमें प्रेरणा देता है। एक साधारण गुजराती परिवार से आने वाले इस अभिनेता ने ‘खिलौना’, ‘आंधी’, ‘मौसम’, ‘कोशिश’ और ‘शोले’ जैसी फिल्मों से दर्शकों का दिल जीता।
शबाना आज़मी, हेमा मालिनी से जुड़े रिश्ते भी रहे चर्चा में
Sanjeev Kumar की निजी ज़िंदगी भी काफी चर्चा में रही। उन्होंने कभी शादी नहीं की, लेकिन उनका नाम कई अभिनेत्रियों के साथ जुड़ा – Shabana Azmi, Sulakshana Pandit और खासकर Hema Malini के साथ। हेमा से उनका रिश्ता काफी सीरियस था, लेकिन संजीव चाहते थे कि शादी के बाद हेमा फिल्मों से दूरी बना लें, जिसे हेमा ने नकार दिया। यही वजह थी कि यह रिश्ता आगे नहीं बढ़ पाया।
संजीव कुमार की ज़िंदगी एक फिल्म जैसी ही रही – संघर्ष, सच्ची दोस्ती और अधूरी मोहब्बत से भरी। आज जब भी Shabana Azmi या Hema Malini का नाम आता है, कहीं ना कहीं संजीव की कहानी भी याद आती है। और ये साबित करती है कि सपने पूरे करने के लिए सिर्फ हुनर नहीं, बल्कि साथ निभाने वाला कोई जमनादास भी ज़रूरी होता है।
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